देहरादून। उत्तराखंड में सालभर पहले आई जल प्रलय को लेकर अभी भी प्रभावितों के घाव हरे हैं। जिनके अपनों को इस आपदा ने लील लिया था, वह उस पीड़ा को अभी तक महसूस कर रहे हैं। ऋषिगंगा में उठे जल प्रलय में कुल 204 लोग लापता हुए थे, इनमें सिर्फ 45 लोगों के ही शव मिल पाए, जबकि 159 को आज तक कुछ पता नहीं चल पाया है।
पिछले साल 7 फरवरी को आई इस आपदा की त्रासदी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जिस ऋषिगंगा पावर प्रोजेक्ट की दो किमी. लंबी सुरंग में फंसकर यहां काम कर रहे मजदूरों की मौत हुई थी, उसमें अभी सिर्फ 300 मीटर तक ही सफाई हो पाई है। अभी 1700 मीटर और सफाई इस टनल में होनी बाकी है।
जब सात फरवरी 2021 की सुबह सवा दस बजे जल प्रलय आई तो उस वक्त किसी को भी इसका आभास नहीं हुआ कि खुली धूप और शुष्क मौसम के बीच नदी का जल प्रवाह ताडंव मचाते हुए आगे बढ़ेगा। यह त्रासदी ग्लेशियर का एक हिस्सा टूटने के बाद हुई।
छह और सात फरवरी की रात करीब ढाई बजे यह ग्लेशियर टूटा और अपने साथ पहाड़, पेड़, मिट्टी पत्थर का सैलाब लेकर आगे बढ़ने लगा, लेकिन तकनीकी तौर पर निगरानी नहीं होने की वजह से जब रैणी गांव और ऋषिगंगा पावर प्रोजेक्ट के पास यह सैलाब पहुंचा तो लोगों को सिर्फ तबाही का मंजर ही नजर आया।