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चकराता: वोटर उलझे, विधायक चुनें या सीएम का चेहरा

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चकराता। चकराता के गढ़ प्रीतम के पक्ष में समर्थक शुरू से ही ऐसा माहौल बना कर चल रहे हैं कि वह इस बार विधायक नहीं सीएम को चुनने जा रहे हैं। मोदी लहर में भी अपना किला बचाकर निकले प्रीतम सिंह के सामने इस बार चौहान परिवार की कोई चुनौती नहीं है। क्योंकि यहां भाजपा ने रामशरण नौटियाल को मैदान में उतरा है। नौटियाल बॉलीवुड गायक जुबिन नौटियाल के पिता हैं।

रामशरण पूर्व में जिला पंचायत अध्यक्ष भी रहे चुके हैं, लेकिन लंबे समय से राजनैतिक तौर पर सक्रिय नहीं थे। उन्होंने भाजपा के शीर्ष नेतृत्व से सीधी पहुंच के बूते टिकट हासिल किया है। बेटे जुबिन की बदौलत कोरोना काल में उन्होंने रिलायंस फाउंडेशन के सहयोग से पूरी विधानसभा में राशन बांटकर अपनी राजनीतिक जमीन को फिर से तैयार किया। इसका फायदा उन्हें चुनाव में कितना मिलेगा, यह तो चुनाव परिणाम आने के बाद ही पता लगेगा, लेकिन फिलहाल प्रीतम के लिए चकराता सुरक्षित मैदान बना हुआ है। उनके सामने जीत के मार्जिन को बढ़ाने की चुनौती होगी, तो रामशरण के लिए चकराता जैसे कांग्रेसी किले में सेंधमारी कर अप्रत्याशित परिणाम को दिखाने की कड़ी परीक्षा से गुजरना पड़ रहा है।

बहरहाल प्रीतम पिछले काफी दिनों से चकराता में पूरी तरह से सक्रिय थे और अपने सभी मोर्चों को मजबूत करने के बाद वह राज्य की दूसरी सीटों पर भी चुनाव प्रचार के लिए निकल पड़े हैं। उनके प्रचार पर निकलने को भी समर्थक सीएम की दावेदारी को और मजबूत करने के तौर पर गिनाकर माहौल बना रहे हैं। ऐसे में भाजपा के लिए रामशरण को जिताकर विधायक बनाना और कांग्रेस के लिए प्रीतम को जिताकर मुख्यमंत्री बनाना ही क्षेत्र में राजनैतिक अहम की लड़ाई बन गई है।

युवा नेता कमलेश और दौलत भी है मैदान में
इन सबके बीच यहां एक और चौंकाने वाली तस्वीर युवा नेता कमलेश भट्ट भी दिखा रहे हैं। वह लंबे समय से बेरोजगारों के आंदोलन का नेतृत्व प्रदेश की राजधानी देहरादून में करते आ रहे हैं। अपने जनसंपर्क अभियान के दौरान भट्ट के साथ भीड़ भी नजर आ रही है। ऐसे में भट्ट कितने वोट बटोरते हैं और उनके पड़ने वाले वोट से कांग्रेस और भाजपा पर कितना असर पड़ता है, यह चुनाव तक साफ हो पाएगा। इसी तरह दलित नेता की छवि के साथ दौलत कुंवर इस बार भी मैदान में हैं। पिछले चुनाव में कांग्रेस के लिए दौलत एक बड़ी चुनौती बने हुए थे, क्योंकि मोदी लहर के बीच जो वोट दौलत को जा रहा था, उसे कांग्रेस को होने वाले संभावित नुकसान के तौर पर देखा जा रहा था। यही वजह रही कि 2017 में चकराता में प्रीतम ने जीत तो दर्ज की, लेकिन वोट मार्जिन कम रहना उनके लिए चिंता का विषय जरूर रहा है। यही वजह रही कि कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद भी उन्होंने चकराता से अपना फोकस जरा भी नहीं हटाया और राज्य कांग्रेस से ज्यादा वक्त वह पिछले पांच साल में चकराता को देते आए हैं।

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