देहरादून। श्रीनगर विधानसभा सीट पर चुनावी मुकाबला दिलचस्प मोड़ पर पहुंच गया है। आखिरी मौके पर पीएम मोदी और प्रियंका गांधी की रैली के बाद भी तस्वीर साफ नहीं हो पाई है। यहां कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल चुनावी रण में फंसे हुए हैं। मंत्री डा. धन सिंह रावत उनकी कड़ी चुनौती पेश कर रहे हैं और चुनावी गणित आखिर में यूकेडी प्रत्याशी मोहन काला पर आकर टिक गया है।
कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल के लिए श्रीनगर सीट पहले जितनी सुरक्षित मानी जा रही थी, उतनी अब दिख नहीं रही है। यहां चुनावी समीकरण लगातार बदलते रहे। मंत्री के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर को कांग्रेस भुनाने में लगी थी। लेकिन यहां लहर जैसी स्थिति नहीं है। मंत्री के व्यक्तिगत व्यवहार को लेकर खुद भाजपाई भी शिकायत जरूर करते आ रहे थे, लेकिन मंत्री डा. धन सिंह रावत ने आखिरी वक्त पर जिस तरह से अपनी चुनावी रणनीति बदली वह उनके पक्ष में दिख रही है।
यहां गणेश गोदियाल का कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष बनना और उसके बाद क्षेत्र को पर्याप्त समय नहीं दे पाना कहीं न कहीं जमीन पर अखर रहा है। क्योंकि जिस गोदियाल को जमीन से जुड़ा नेता माना जाता है, वह चुनाव में उतना वक्त नहीं दे पाए। जबकि इस दौरान भाजपा प्रत्याशी डा. धन सिंह रावत ने गांव-गांव पहुंचकर लोगों की नाराजगी को दूर करने का प्रयास किया।
गोदियाल को संगठन की ताकत पर भरोसा
गणेश गोदियाल को संगठन की ताकत पर पूरा भरोसा है। यही वजह है कि उन्होंने चुनावी कमान अपने संगठन के तर्जुबेदार लोगों के हाथ में सौंपी रखी। साथ ही राठ क्षेत्र को ओबीसी क्षेत्र घोषित करने का माइलेज वह आज भी लेते नजर आ रहे हैं। इसके अलावा पैठाणी में राठ डिग्री कॉलेज की स्थापना भी उनके पक्ष मे हमेशा जाता रहा है। साथ ही श्रीनगर को नगर निगम बनाने और उससे जुड़े गांवों को नगर निगम में शामिल करने के मामले में गोदियाल जनभावनाओं के साथ रहे और इन्हीं बातों पर उनका पूरा चुनाव टिका हुआ है।
डा. धन सिंह ने समय रहते खुद को संभाला
2017 में मोदी लहर के बीच विधायक बनकर मंत्री बने धन सिंह ने जमीनी हकीकत समझने में देर नहीं की। 2017 के बाद दो साल तक उनके खिलाफ जिस तरह की सत्ता विरोधी लहर पैदा हुई थी, वह उसे कम करने में कामयाब रहे। उन्होंने पिछले तीन साल में क्षेत्र के मुद्दों और विकास पर खुद को फोकस रखा और क्षेत्र में सक्रियता बनाई रखी। मंत्री के तौर पर वह अपने कार्यकाल को उपलब्धि के तौर पर गिनाते हैं, जिनमें कई काम जमीन पर भी दिखाई देते हैं। साथ ही उन्होंने पूरे चुनाव में मोदी के नाम को पूरी तरह से भुनाया और वह मोदी के नाम पर ही वोट मांगते रहे, जिसने एक बड़े तबके को प्रभावित भी किया।
जातीय समीकरण रहते हैं अहम
असल में श्रीनगर सीट पर जातीय समीकरण काफी अहम रहते हैं। इसे इस बात से समझा जा सकता है कि जब भुवन चंद्र खंडूड़ी और सतपाल महाराज लोकसभा चुनाव में आमने-सामने रहते थे तो खंडूड़ी जीतने के बावजूद पाबौ और थलीसैंण विकासखंड से वोटों में पिछड़ जाते थे। इसकी वजह सिर्फ जातीय समीकरण रहे हैं। यह समीकरण आज भी इस सीट को प्रभावित करते हैं। ऐसे में यूकेडी के मोहन काला की मौजूदगी पूरे मुकाबले को दिलचस्प मोड़ पर लेकर जाती है।
निगेटिव प्रचार और हेलीकॉप्टर का गणित
वर्ष 2002 में गणेश गोदियाल पहली बार विधानसभा पहुंचे थे। वह तब दिग्गज नेता शिवानंद नौटियाल का टिकट काटकर कांग्रेस का चेहरा बने थे। उन्होंने रमेश पोखरियाल निशंक को शिकस्त दी थी और इसमें सबसे अहम फैक्टर रहा था कि निशंक स्टार प्रचारक थे और वह क्षेत्र में समय नहीं दे पाए। नामांकन के दिन भी हेलीकॉप्टर से पौड़ी पहुंचे और क्षेत्र से पहुंची हजारों भीड़ को संक्षिप्त संबोधन देकर हेलीकॉप्टर से उड़कर वापस देहरादून आ गए। इसी बात को गोदियाल समर्थकों ने तब भुना लिया था कि जो आदमी अभी से हवा में उड़ने लग गया है, उसको राठ के लोग कैसे मिल पाएंगे। यह फैक्टर इस बार डा.धन सिंह रावत के समर्थक गोदियाल को लेकर कह रहे हैं। प्रदेश अध्यक्ष बनने की वजह से गोदियाल पर जिम्मेदारी ज्यादा है और वह हेलीकॉप्टर से ही क्षेत्र में पहुंच रहे हैं। ऐसे में भाजपा समर्थक 2002 की बात को अब गोदियाल पर फिट बैठा रहे हैं। लेकिन कांग्रेस डा.धन सिंह की व्यक्तिगत छवि, सहकारिता में हुए काम और नौकरियों को लेकर लगातार भाजपा को घेर रहे हैं।