देहरादून । राजपुर विधानसभा सीट पर मुकाबला रोचक हो चला है। यहां मौजूदा विधायक खजान था और पूर्व विधायक राजकुमार के बीच सीधी टक्कर है खजान के सामने सीट बचाने की चुनौती है तो राजकुमार की राह भी आसान नहीं है।
14 फरवरी को मतदान होने जा रहा है हर किसी की नजर राजपुर रोड पर लगी हुई है खास बात यह है कि इस सीट पर स्मार्ट सिटी भी बन रही है और स्मार्ट सिटी को लेकर जिस तरह के दावे किए जा रहे हैं वह जमीन पर अभी वैसे नजर नहीं आ रही है। इसलिए इस चुनौती से खजान दास पूरे चुनाव के दौरान जूझते रहे। उन्हें लोगों के सवालों का जवाब अपने प्रचार के दौरान देना पड़ा है।
लोगों में स्मार्ट सिटी के अभी के हालात को लेकर नाराजगी है। इधर राजकुमार स्मार्ट सिटी के मुद्दे पर लगातार सरकार, भाजपा और खजान दास को घेरते आ रहे हैं, वह तो कांग्रेस सरकार बनने पर इसकी जांच का एलान कर चुके है। कांग्रेस के पूर्व विधायक राजकुमार अपनी चुनावी जीत के लिए इस मुद्दे को जितनी प्रमुखता से उठा रहे हैं उतनी ही शिद्दत से उनका फोकस बस्तियों के वोट पर भी है।
कुल मिलाकर राजकुमार बस्तियों के वोट से अपनी जीत की तलाश कर रहे हैं तो खजान दास जनता के सवालों के बीच अपनी कमियों को स्वीकारने से भी गुरेज नहीं कर रहे हैं, यही बात उनके पक्ष में भी जा रही है। साथ में संगठन की ताकत उनके पास है और इसी ताकत के बूते उन्होंने 2017 का चुनाव इससीट से जीता था तब वह धनोल्टी से उतरकर राजपुर रोड पर आए थे। बमुश्किल 15- 20 दिन का समय उन्हें चुनाव लड़ने के लिए मिला था। वह ना इस सीट की तब भवन की स्थिति जानते थे ना गलियों से वाकिफ थे हालांकि आज भी वह इस परेशानी से जूझ रहे हैं। लेकिन उन्होंने संगठन के बूते और मोदी लहर के साथ 2017 का चुनाव जीत लिया था। इस बार 2017 जैसे हालात तो नहीं है।
खजान दास काफी हद तक इन गलियों को जान चुके हैं और भौगोलिक सीमा को भी पहचानने लगे हैं लोगों में उनका उठना बैठना भी है हां इतना जरूर है कि 2017 कैसी मोदी लहर इस बार नजर नहीं आ रही है लेकिन संगठन उतना ही मजबूती के साथ खजान दास का चुनाव लड़ रहा है।
अब बात करें राजकुमार की। इस चुनाव को अच्छे तरीके से लड़ रहे हैं उनके साथ काफी लोग वह भी जुड़े हैं जो पहले उनसे छिटक गए थे। 2017 के मुकाबले इस बार उनका चुनाव प्रबंधन भी ज्यादा बेहतर है। लेकिन पार्टी संगठन की सक्रियता और पुराने खांटी कांग्रेसजनों का चुनावी कमान न संभाल पाना राजकुमार की कमजोरी बनी हुई है। 2012 में जब राजकुमार ने जीत दर्ज की थी तो जो ताकत तब उनके साथ थी वह इतनी मेहनत करते हुए नजर नहीं आती हैं।
भाजपा में मोदी युग और नोटबन्दी क बाद से बस्ती का वोट बंट गया था, यहीं कांग्रेस जीत की तलाश कर रही है, लेकिन यह वोट किसी एक को एकमुश्त मिलना सम्भव ही नहीं है, यानी राजपुर के रण में भाजपा और कांग्रेस कठिन मुकाबले में फंसे हैं।